Republic Day 2023: गणतंत्र दिवस शायरी, शुभकामना, कविता

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भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। इसने कई संस्कृतियों को जन्म लेते और उजड़ते देखा है। कालचक्र के प्रभाव से भारत की पवन भू को अनेकों बार विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है, परन्तु भारतीय समाज हर बार विजयी रहा है। छब्बीस जनवरी की तिथि इस तथ्य को दर्शाती है। इस दिन सन 1950 को आधुनिक भारत के लिए संविधान लागू किया गया था। तब से ले कर आज तक छब्बीस जनवरी भारतीय जनता के लिए एक बड़ा दिन है। आज के हमारे इस लेख में पाठको के लिए गणतंत्र दिवस की कविता, भारत पर कविता, भारतीय संस्कृति पर कविता आदि प्रस्तुत की जा रही है। उम्मीद है पाठकों को ये प्रस्तुति अच्छी लगेगी।

26 जनवरी का महत्व

छब्बीस जनवरी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में देखा जाता है। आज से करीबन 74 साल पहले इसी दिन इस लोकतंत्र के मेरुदंड यानि भारतीय संविधान को लागू किया गया था। एक लंबी परतंत्रता के बाद भारत वासियों को स्वतंत्रता और स्वावलंबन की सुखद अनुभूति प्राप्त हुई थी। 26 जनवरी 1950 के दिन हमारा देश एक गणतंत्र घोषित हुआ था। गणतंत्र अर्थात् जिस स्थल पर जनता का शासन हो यानि कोई परंपरागत राज परिवार देश में सत्ताधारक ना हो। दोस्तो, गणतंत्र दिवस प्रजातंत्र का सबसे बड़ा त्योहार है। 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद चुने गए थे। तब से हर 26 जनवरी को विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

रिपब्लिक डे पोएम इन हिंदी

“सिंचित हुआ जिस भू पर विश्व का प्रथम गणतंत्र

उस वसुधा को ये छब्बीस जनवरी नमन सा करती है

उठती थीं जो भृकुटियां संशय से इसके समेकन पर,

ये तिथि, इस उद्दण्ड सोच का दमन सा करती है!

मेरुदंड इस लोकतंत्र का प्रभाव में इस

दिवस को आया था,

धरती पर ही नहीं हिंद के हर उर में तब तिरंगा लहराया था!

अथक परिश्रम पराक्रम है असंख्य दिलेरों का जिनके प्रभाव से,

यह दिन अंततोगत्वा अस्तित्व को गले मिल पाया था!”

भारत पर कविता इन हिंदी

“उत्तर में हिम सिरमौर बने 

पद उसका सरिता सिंचित 

भू, सहलाती है..

मरूस्थली उर्वरक वसुधा के

समीप विराजे

तो पूर्वांचल की छवि न्यारी 

बहुल रीत समेटे इठलाती है

है ठोस पठार मध्य में जहाँ 

एक संस्कृति के सृजन हेतु 

अपार निधि मिल जाती है

दक्षिण में सिंधु की आभा

कुंतल परिदृश्य दिखलाती है!

स्पंदन है विविधता की जो, 

एकता की झंकार प्रबल कर जाती है

समशीतोष्ण आवरण लिए अपनी धरा

समृद्ध संस्कृति का पर्व मनाती है!”

शादी पर शायरी यहां पढ़ें।

भारतीय संस्कृति पर कविता

“ ‘संस्कृति’ शब्द उर से

विचरण करता हुआ,

जब आचरण में प्रकट हो जाता है,

नश्वर से इस शरीर में 

अक्षुण्ण गौरव की बयार चलाता है 

हों अपनी माटी पर या मीलों 

इससे दूर खड़े 

करें अचल समर्पण अर्पण इसको

मूल्यों का चोला यूँ ओढ़ चले!

हाड़-माँस की काया को

‘सभ्य’ कहलाने का तमगा

निज भू की संस्कृति दिलवाती है

क्या पाया इतिहास से,

 क्या सौंपा भविष्य को

बचा काल के ग्रास से…

ये संस्तुति ही तो संस्कृति बन जाती है!”

हिंदी की दुर्दशा पर कविता पढ़ने के लिए क्लिक करें।

स्वतंत्रता दिवस कविता

“दीर्घ काल तक भारत भू ने

परतंत्रता की पीड़ सही

स्वर्ण साम्राज्य में निज के

उद्दण्डों की भारी भीड़ सही 

कभी सौहार्द्र को देने चुनौती 

लुटेरे पार से आते थे

कभी व्यापारियों का भेष धरे

कुछ घुसपैठिये डेरा जमाते थे

कालचक्र के चक्रवात में 

दारिद्र्य का चौड़ा था कपाट हुआ 

नियति भी हुई अचंभित,

जब थे यहाँ ‘मानव रचित’ अकाल पड़े

कलाक्षेत्र गए थे उजड़, खण्डित विरासत

भू वासी के अस्तित्व पर विकट प्रश्न खड़े

विश्र्व गुरू का अलंकरण धूमिल 

जान तब पड़ता था,

जब देश का बच्चा बच्चा, फिरंगियों 

की ‘दया’ से अपना पेट भरता था

मनोबल का जैसे कूच था हो चुका

आत्मबल का बोध भी मानस पर,

तब था कहाँ रूका!

अपनी ही वसुधा पर कठपुतलियां बन

शासक निर्देश माना करते थे

जिन्होंने ने विरोध का शिविर लगाया,

उनके घाती कुछ ‘अपने’ ही बन उभरते थे!

‘स्वतंत्रता’ के आलिंगन बिन अपना 

अस्तित्व अधूरा है

इस तथ्य का बोध करवाने को

असंख्य बलिदानों का मोल लगा

तब जाकर ‘स्वतंत्रता’ की कमली का

भारत भू पर चोल लगा

ये 15 अगस्त एक दिनांक नहीं 

अपितु आभार व गर्व की अनुभूति है

देने को हमें यह दिन और दिखाने को

अखण्ड अक्षुण्ण अमर भारत का मार्तण्ड 

न जानें कितनी पड़ी प्राण सिंचित आहुति है!”

FAQs

भारत कब गणतंत्र हुआ?

26 जनवरी 1950

भारत की सांस्कृतिक धरोहर?

अजंता एलोरा, सांची बौद्ध मठ, खजुराहो आदि।

भारत का संविधान किसने लिखा?

श्री प्रेम बिहारी नारायण जी ने।

भारत के संविधान पर कविता?

“संविधान मैं भारत का
जन मानस में ओज भरता हूं
जिस भू पर सृजन हुआ गणतंत्र
के प्रथम विचार का
उस पुण्य वसुधा पर लोकपालन की
अडिग प्रतिज्ञा मैं करता हूं!”

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