कजरी तीज कब है 2023 व्रत कथा, पूजा विधि, कहानी

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दोस्तों, कजरी तीज या कजली तीज सुहागिनों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। शिव जी और मैया गौरी के प्रेम और मिलन के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार में महिलाओं की बड़ी श्रद्धा होती है। तीज के दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखती हैं और गौरी मैया और भगवान शिव की पूजा अर्चना करती हैं। इस व्रत के साथ साथ वो अपने सौभाग्य और सुहाग के लिए प्रार्थना करती हैं। दोस्तों, तीज उत्तर भारत में विशेष तौर पर मनाया जाता है।

राजस्थान, यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में तीज व्रत रखने की परंपरा है। साथ ही तीज के भी तीन मुख्य प्रकार होते हैं। हरियाली, हरतालिका और कजरी तीज। आज के लेख में हम कजरी तीज कब है और उससे जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को जानेंगे।

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कजरी तीज कब है 2023 में

कजरी तीज हर वर्ष भादो महीने के कृष्ण पक्ष की तीसरी तारीख को मनाई जाती है। ज्यादातर ये तारीख अगस्त के महीने में आती है। इस वर्ष कजरी तीज 2 सितंबर को मनाई जाएगी। 

कजरी तीज क्यों मनाई जाती है

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाई जानेवाली कजरी तीज सुहागिनों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना लिए व्रत रखती हैं। कजरी तीज के दिन कुंवारी कन्याएं भी मनचाहे वर के लिए व्रत रख सकती हैं। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भारत के मध्य में कजरी नामक एक वन हुआ करता था। वहां के निवासी कजली नामक लोक गीत गया करते थे। कजरी वन के राजा की जब मृत्यु हुई तो वहां के निवासी दुखी हो गए। राजा की मृत्यु के बाद रानी ने भी अपने प्राण त्याग दिए और वो सती हो गईं। इस घटना के बाद से कजली गीत पति पत्नी के प्रेम का प्रतीक बन गया।

कजरी तीज का महत्व

कजरी तीज का एक विशेष महत्व है। इस दिन खास किस्म के पकवान भी बनाए जाते हैं। आइए, एक नज़र इस तीज के महत्व पर डालते हैं:

  • कजरी तीज माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक है। माता पार्वती अपनी घोर तपस्या और दृढ़ निश्चय से महादेव को पतिरूप में प्राप्त करने में सफल हुईं। अतः इस दिन जो स्त्री अपने पति के प्रेम और लंबी आयु की कामना करती है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
  • इस व्रत को कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं ताकि उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो।
  • कजरी तीज पर गेहूं, जौ, सत्तू, घी, मेवा आदि से पकवान बनाए जाते हैं।
  • इस दिन गौ माता का पूजन भी किया जाता है।
  • इस अवसर पर घरों में झूले भी लगाए जाते हैं। 
  • महिलाएं इस दिन पूजा आराधना के साथ साथ नृत्य और गायन भी करती हैं।
  • यूपी, बिहार जैसे क्षेत्रों में ढोलक की थाप पर गीत गाए जाते हैं।

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कजरी तीज का व्रत

दोस्तों, कजरी तीज व्रत विधि इस प्रकार है:

  • कजरी तीज के दिन नीम‌ड़ी माता के पूजन का विधान है। मिट्टी एवं गोबर की मदद से तालाब जैसी आकृति बनानी होती है। 
  • उसमें नीम की टहनी रोपी जाती है।
  • तालाब में जल और कच्चा दूध भरा जाता है। इसके किनारे पर दीप जलाए जाते हैं।
  • एक थाली में नींबू, सत्तू, सेब, केला, ककड़ी, अक्षत, मौली आदि रखे जाते हैं।
  • एक लोटे में कच्चा दूध भी रखा जाता है।
  • महिलाएं शाम को सोलह श्रृंगार कर के नीम‌ड़ी माता की पूजा करती हैं।
  • सर्वप्रथम माता को जल और रोली अर्पित करें। फिर चावल चढ़ाएं।
  • नीम‌ड़ी माता के पीछे मौजूद दीवार पर काजल, मेंहदी, रोली की तेरह तेरह बिंदियां अपनी उंगली से लगाएं। काजल की बिंदी तर्जनी से लगाएं जबकि मेंहदी रोली को अनामिका से लगाएं।
  • माता को वस्त्र, मोली, मेंहदी, काजल आदि चढ़ाएं।
  • फिर माता को फल और दक्षिणा अर्पित करें।
  • पूजा के कलश पर भी रोली लगाएं।
  • पूजा स्थल पर आपको वहां रखे दीप के सहारे नींबू, नीम की डाली, ककड़ी, नथ, साड़ी का आंचल देखना है।
  • इसके बाद आप चंद्रमा को अर्घ्य दें। उन्हें भोग अर्पित करें।
  • इस व्रत को सामान्यतः निर्जला किया जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रत खोल सकते हैं।

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कजली तीज कहां की प्रसिद्ध है

दोस्तों कजरी तीज को कजली तीज/बूढ़ी तीज/ सातुरी तीज भी कहते हैं। वैवाहिक सुख और सौभाग्य देने वाली इस तीज को हिंदी भाषी राज्य जैसे कि बिहार, मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान आदि में खास तौर पर मनाया जाता है। वैसे कजली तीज राजस्थान स्थित जोधपुर, शेखावटी, बूंदी, जयपुर आदि जगहों में काफी चर्चित है। यहां तीज का मेला भी लगता है।

FAQs

कजरी तीज कितने तारीख को है?

2 सितंबर

कजरी तीज कब पड़ेगा?

2 सितंबर

कजली तीज राजस्थान में कहां मनाई जाती है?

राजस्थान में जयपुर, जोधपुर आदि शहरों में।

बूंदी की कजली तीज कब मनाई जाती है?

भादो के शुक्लपक्ष की तृतीया को।

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