सीता माता की कहानी (जन्म कथा, रामायण)

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दोस्तो, सीता माता की कहानी हमारे इतिहास में शामिल अद्भुत और गौरवशाली कहानियों में से एक हैं। हमारी संस्कृति माता सीता को उनके त्याग, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा एवं आत्मगौरव के प्रति किए गए बलिदान के लिए बारंबार नमन करती है। जगतजननी जगदम्बा ने मनुज रूप में अपनी अनुपम लीला की।

 प्रभु श्री राम की जीवनसंगिनी बन कर माता सीता ने ऐसे अनेकों उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जिनसे हर मनुष्य मर्यादित आचरण की प्रेरणा ले सकता है। तो आइए पाठकों, आपको सीता माता की कहानी सुनाते हैं। उनके दिव्य जीवन से हमनें कुछ रोचक तथ्य लिए हैं, जो वास्तव में प्रेरणादयी हैं। 

सीता माता किसकी बेटी थी

दोस्तो, सीता माता के जन्म से जुड़ी अनेक कथाएं चर्चित हैं। ज्यादातर ये कहा जाता है कि माता सीता मिथिलानरेश राजा जनक की पुत्री थीं, जिन्हें उन्होंने गोद लिया था। कभी कभी ऐसा भी सुनने को मिलता है कि सीता जी रावण की बेटी थीं।

हालांकि वाल्मीकि रामायण के हिसाब से मिथिला के क्षेत्र में भयंकर सूखा पड़ गया था। तभी मिथिला नरेश को एक ऋषि ने यज्ञ करने और उसके पश्चात धरती को जोतने का सुझाव दिया। जब जनक ऐसा कर रहे थे तब उन्हें खुदी हुई धरती में एक सोने के संदूक में एक सुंदर बच्ची मिली। चूंकि जनक की उस वक्त कोई संतान नहीं थी तो उन्होंने उस बच्ची को अपनी पुत्री मान कर अपना लिया। इसी कन्या का नाम सीता हुआ।

जैसा कि हमने जाना कि सीता जी का जन्म किसी मां के गर्भ से नहीं हुआ था, इसलिए उन्हें धरती-पुत्री भी कहा जाता है।

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सीता माता का जन्म स्थान

दोस्तो, माता सीता का जन्मस्थान जनकपुर है। जनकपुर को रामायण काल में मिथिला के रूप में जाना जाता था। आज जनकपुर नेपाल के धानुषा जिले से कुछ दूरी पर स्थित है। यहां पर माता सीता का एक भव्य मंदिर भी है। ये मंदिर भारतीय सीमा से बस 22 किमी की दूरी पर है।

सीता माता की बहनों के नाम

पाठकों, सीता माता की बहनें भी उनकी तरह ही दिव्य थीं। वाल्मिकी रामायण में बताया गया है कि उर्मिला सीता की छोटी बहन थीं। इनका विवाह लक्ष्मण जी के साथ संपन्न हुआ था। उर्मिला के अलावा सीता जी की दो और बहनें भी थीं। इनका नाम मांडवी एवं श्रुत्कीर्ति था। ये दोनों जनक जी के अनुज कुशध्वज की पुत्रियां थीं। दोस्तो, मांडवी का विवाह भरत के साथ हुआ था। जबकि श्रुत्कीर्ति के साथ शत्रुघ्न की शादी हुई थी।

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सीता माता का जन्म कैसे हुआ

दोस्तो, सीता माता का जन्म कैसे हुआ, ये प्रश्न आज भी हम में से कई लोगों के मन में आता है। दरअसल, सीता जन्म को ले कर कई कथाएं सुनने को मिलती हैं। पहली कथा जो कि हमनें आपको बताई, जो वाल्मिकी रामायण में मिलती है। जब राजा जनक को खेत में हल चलाते समय एक सुंदर कन्या भूमि में मिली थी। राजा जनक ने इस कन्या को अपनी संतान मान कर इसका लालन पालन किया और यही कन्या सीता, जानकी, वैदेही जैसे नामों से प्रसिद्ध है।

एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार सीता जी को रावण और मंदोदरी की पुत्री बताया गया है। माना जाता है कि सीता जी वेदवती नामक स्त्री की पुनर्जन्म थीं। वेदवती ने रावण से अपने को बचाने के लिए स्वयं को भस्म कर लिया था। साथ ही उसे श्राप दिया कि वो रावण की बेटी बन कर आएगी और उसका विनाश करेंगी। आगे चल कर जब रावण की पत्नी मंदोदरी को पुत्री हुई तो इस श्राप के चलते उसने पुत्री को समुद्र में फेंक दिया। समुद्र की देवी वरुणी ने पृथ्वी माता को कन्या सौंप दी जो आगे चल कर राजा जनक और देवी सुनैना की पुत्री सीता कहलाई।

सीता माता का श्राप

वाल्मिकी रामायण में महाराज दशरथ के पिंडदान से जुड़ा है। बात तब की है जब दशरथ जी का श्राद्ध करने के लिए पितृ पक्ष के समय गया गए थे। श्राद्ध कर्म के लिए सामान जुटाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर गए। पर दोपहर तक नहीं लौटे।

 तब माता सीता ने श्राद्ध की विधि को पूर्ण किया। वहां मौजूद फल्गू नदी, वट वृक्ष, गाय, केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बनाया। जब श्री राम लौटे तो माता सीता ने उन्हें सारी बात बताई। राम जी के साक्ष्य मांगने पर सीता माता ने फल्गू नदी, वट वृक्ष, गाय, केतकी के फूल को प्रमाण के तौर गवाही देने बोला।

 पर वट वृक्ष को छोड़ बाकियों ने झूठ बोल दिया। बाद में दशरथ जी ने स्वयं उपस्थित हो कर सीता जी के पक्ष में बात कही। इसके बाद सीता माता ने फल्गू नदी, गाय, केतकी के फूल को श्राप दे दिया। सच बोलने के चलते वट वृक्ष पूजनीय हो गया। जबकि श्राप के प्रभाव से फल्गु नदी बिना पानी के, गाय जूठन खानेवाली और केतकी के फूल पूजा में वर्जित हो गए।

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सीता माता धरती में क्यों समाई थी?

माता सीता को श्री राम के दरबार में अपनी शुद्धता की शपथ लेने के लिए बुलाया गया था। माता सीता अयोध्या की प्रजा से दुखी हो चुकी थीं। जिस प्रजा के लिए उन्होंने सब कुछ छोड़ा, एक बार फिर से वही प्रजा उनकी शुद्धता का प्रमाण मांग रही थी।

पर इस बार माता सीता ने एक कठोर निर्णय लिया। उन्होंने प्रजा के मन में उठने वाले संशय को हमेशा के लिए खत्म करने की ठानी। जब वो दरबार में पहुंचीं तो उन्होंने पृथ्वी देवी से प्रार्थना की कि अगर मैने मन, कर्म और वचन से केवल भगवान श्री राम की ही पूजा ही है तो वो उन्हें अपनी गोद में स्थान दें।

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मां सीता की करुण प्रार्थना सुन कर पृथ्वी देवी ने उन्हें अपनी गोद में स्थान दिया। भरे दरबार में धरती फटी और माता सीता उसमें समा गईं।

दोस्तो, उम्मीद है कि आपको सीता माता की कहानी पर लिखा ये लेख ज्ञानवर्धक लगा होगा। हमनें इंटरनेट की मदद से इसे तैयार कर, जानकारियां एकत्रित की हैं। ऐसी और भी जानकारियों के लिए हमारी साइट पर ज़रूर आएं।

FAQs 

तोते ने सीता माता को क्यों श्राप दिया?

एक नर तोते ने माता सीता को श्राप दिया था क्योंकि मादा तोते ने अपने प्राण त्याग दिए थे जब सीता जी ने उसे अपने पास उसे रख लिया था। नर तोता अपनी साथी के वियोग में माता सीता को श्राप देता है।

सीता जी कौन सी जगह समाई थी?

माना जाता है कि सीता जी सीतामढ़ी में धरती में समाई थी।


वाल्मिकी आश्रम कहां है?

बिहार में, नेपाल सीमा के पास बगहा में स्थित है।

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